तब थे दो फीसद साक्षर - राज खन्ना

 सुल्तानपुर


तब थे दो फीसद साक्षर - राज खन्ना


आजादी की पहली लड़ाई में जीत के बाद अंग्रेज गोमतीं के उत्तरी किनारे पर स्थित सुल्तानपुर के पुराने शहर को नष्ट कर चुके थे। दक्षिणी किनारे पर फौजी छावनी थी। जिले पर अंग्रेजों की पकड़ मजबूत हों गई थी। विद्रोही गतिविधियां शांत थीं।  1861 में यहां से सेना हटा ली गई। नए शहर ने आकार लेना शुरु किया । कलेक्ट्रेट में काम शुरू हो चुका था। फिर 1862 में जिले के पहले गवर्नमेंट स्कूल की स्थापना हुई। वहां दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई होती थी।  1866 में इसका भवन तैयार हुआ। इस स्कूल के साथ ही जिले में अंग्रेजी भाषा की पढ़ाई का श्रीगणेश हुआ।  1874 में पहला जूनियर हाई स्कूल जगदीशपुर में स्थापित हुआ। उस वक्त जिले में 114 प्राइमरी स्कूल थे। जिले में कुल छात्र 4,607 थे। 1890 में प्राइमरी स्कूल घटकर 76 रह गए। छात्रों की संख्या भी कम हुई। इस साल पूरे जिले की छात्र संख्या 3,033 थी। स्कूल खुलते थे और आर्थिक संसाधनों की कमी से बंद हो जाते थे। ऐसे स्कूलों की उम्र इतनी कम होती थी कि उनकी संख्या भी दर्ज नहीं हो पाती थी। उन्नीसवीं सदी के आखिरी दशक में स्कूलों की संख्या दोगुनी से ज्यादा हो गई। पढ़ने वाले भी उसी अनुपात में बढ़े। स्कूलों की संख्या में यह बढोत्तरी सरकारी मदद का नतीजा थी। 1896 में स्कूलों को सरकार से आर्थिक मदद मिलनी शुरू हुई। जगदीशपुर में जूनियर हाई स्कूल खोले जाने के लगभग चार दशक के अंतराल पर 19वीं सदी के शुरू में सरकार ने हसनपुर, दोस्तपुर और सुल्तानपुर में तीन जूनियर हाई स्कूल स्थापित किये। 1903 में जिले में कुल 162 प्राइमरी स्कूल थे। इनमें मुसाफिरखाना में 41 , सुल्तानपुर में 52 , कादीपुर में 36 और अमेठी में 33 स्कूल थे। लड़कियों की शिक्षा के लिए अलग से हसनपुर, सुल्तानपुर और दोस्तपुर में स्कूल इसी अवधि में खोले गए। छात्रों की कुल संख्या 4,616 थी। जिले में ताल्लुकदारों और अन्य समर्थ लोगों की मदद से भी अनेक निजी स्कूल चलाये जाते थे। पर कुल मिलाकर शिक्षा क्षेत्र में जिले की स्थिति काफी शोचनीय थी। इसका प्रमाण उस दौर की दयनीय साक्षरता दर है।

               1901 में सुल्तानपुर की जनसंख्या 10,83,904 थी। इसमें साक्षरों की संख्या सिर्फ 2.08 फीसद थी। अवध के सिर्फ दो जिले हरदोई और खीरी इस मामले में सुल्तानपुर से पीछे थे , जहां साक्षरता दर क्रमशः 1.8 और 1.79 फीसद थी। दिलचस्प है कि  बीते दस वर्षों की तुलना में 1901में सुल्तानपुर में साक्षरता में कमी दर्ज हुई। 1891 में यह प्रतिशत 2.65 था। महिलाओं की साक्षरता में 1891 में सुल्तानपुर पूरे यूनाइटेड प्रॉविंस में सबसे पीछे था। तब प्रति दस हजार में केवल पांच महिलाएं साक्षर थीं। 1901 में इसमें कुछ सुधार हुआ और प्रति दस हजार में महिला साक्षरों की संख्या 11 हो गई। मुख्यतः हिंदी भाषा में यहाँ पढ़ाई होती थी , जबकि मुस्लिम उर्दू पढ़ते थे। अंग्रेजी की जानकारी के सवाल पर प्रदेश में सुल्तानपुर सूची में अंतिम से एक संख्या ऊपर था।बस्ती जिला आखिरी पायदान पर था। 1891 में जिले के प्रति दस हजार लोगों में केवल तीन अंग्रेजी जानते थे। 1901 में यह संख्या प्रति दस हजार के विरुद्ध नौ थी। इस समय तक जिले की महिलाएं पूरी तौर पर अंग्रेजी से अपरिचित थीं।  

               बीसवीं सदी की शुरुआत तक जिले में चिकित्सा सेवाएं नाम - मात्र की थीं। इनका संचालन जिला बोर्ड द्वारा होता था , हालांकि सीधा नियंत्रण सिविल सर्जन का था। सिविल सर्जन का पद 1872 के पूर्व से था लेकिन जिला मुख्यालय पर सिर्फ एक डिस्पेंसरी थी , जिसके इंचार्ज सिविल सर्जन थे। सहायता के लिए एक असिस्टेंट सर्जन और तीन डिस्पेंसरी सहायक थे। पुलिस लाइन में पुलिस डिस्पेंसरी का इंचार्ज एक कम्पाउंडर था। मुख्यालय पर महिलाओं की चिकित्सा के लिए एक सहायिका नियुक्त थी। राजा कुड़वार की रियासत में संचालित एक महिला अस्पताल का संचालन भी एक सहायिका के जिम्मे था। रायपुर(अमेठी) , कादीपुर और मुसाफिरखाना में भी सरकारी डिस्पेंसरी थीं लेकिन कहीं पर भी डॉक्टर नियुक्त नहीं थे। प्रशिक्षित सहायक ही इन डिस्पेंसरी के इंचार्ज थे। एलोपैथी प्रेक्टिस करने वाला कोई अन्य डिग्रीधारी निजी चिकित्सक नहीं था। इलाज के लिए आमतौर पर लोगों को वैद्यों और हकीमों का ही सहारा था। शहर में निराश्रितों - विकलांगों के लिए एक आश्रय स्थल था। इसका मासिक खर्च एक सौ रुपया नागरिकों के चंदे से जुटाया जाता था। कालरा ( हैजा) और स्माल पॉक्स (छोटी चेचक) से प्रतिवर्ष जिले में हजारों की जान जाती थी। 1891 से 1902 के बीच प्रतिवर्ष हैजे से 5010 मौतें हुईं , जो विभिन्न बीमारियों से कुल मौतों का 13.4 प्रतिशत था। 1891 और 1900 में पूरे जिले में यह तेजी से फैला। इन वर्षों में क्रमशः 18920 और 17,174 मौतें सरकारी अभिलेखों में दर्ज हुईं। स्माल पॉक्स दूसरी जानलेवा बीमारी थी। 1897 के साल में इससे 6,430 मौतों की सरकार को सूचना प्राप्त हुई। स्माल पॉक्स से कम-ज्यादा मौतों का यह सिलसिला पिछले दशकों से जारी था। डायरिया से औसतन हर साल आठ सौ लोगों की जान जाती थी। बुखार जिसमें मलेरिया भी था , प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में मौतों का कारण बनता था। 1903 में जिले में प्लेग ने भी दस्तक दे दी थी। अंग्रेजी राज के हाकिमों के मुताबिक दो प्रमुख तीर्थ स्थलों प्रयाग और अयोध्या के बीच सुल्तानपुर स्थित है और साल भर में कई अवसरों पर इन दोनों स्थानों को जाने वाले तीर्थ यात्री यहां से गुजरते और पड़ाव डालते हैं। ये हाकिम जिले में हर साल फैलने वाली संक्रामक बीमारियों को मुख्य तौर पर ' तीर्थ यात्रियों ' की देन मानते थे। संक्रमण की रोकथाम के लिए 1889 से वैक्सिनेशन का अभियान शुरू हुआ। ब्राह्मणों और राजपूतों की ओर से विशेष रूप से इसका विरोध जारी रहा लेकिन इस अभियान ने धीरे-धीरे गति पकड़ी। 1889 में 8,910 वैक्सिनेशन हुए। 1894 में इनकी संख्या 17,397 थी। 1900 की संख्या 31,340 बताती है कि लोगों को इनका लाभ समझ में आने लगा था। इस वर्ष तक 15 वैक्सिनेटर इस कार्य में लगाये गए थे।

           जिले में डाक सेवाएं 1857 के बाद ही प्रारम्भ हो गईं थीं लेकिन शुरुआती वर्षों में ये तहसीलों-थानों  तक ही सीमित थीं। उनके स्टाफ के जिम्मे ही इसकी व्यवस्था भी थी। 1863 में प्रथम बंदोबस्त के समय इस बात पर बल दिया गया कि तहसील और थानों के स्टाफ को यथासंभव डाक सेवाओं की जिम्मेदारी से मुक्त किया जाए। पहले यह व्यवस्था एक जिला स्तरीय अधिकारी को सौंपी गई लेकिन 1871 में यहां की डाक सेवाएं अवध के चीफ इंस्पेक्टर पोस्ट ऑफिसेस के अधीन आ गईं। 1903 तक जिले मुख्यालय पर हेड पोस्ट आफिस के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में 12 सब पोस्ट आफिस 27 ब्रांच पोस्ट आफिस खुल चुके थे। टीकर और बेलवाई के ब्रांच आफिस जिला बोर्ड के अधीन थे। लेकिन बीसवीं सदी शुरू होने के बाद भी केवल अमेठी रूट की डाक के लिए एक मोटर वाहन था। शेष जिले का डाक वितरण ' डाक रनर ' द्वारा पैदल चलकर किया जाता था। 1874 में यह रनर प्रतिदिन 94 मील की पैदल तय करते थे। 1902 में डाक रनर की संख्या 49 थी और वे प्रतिदिन जिले के भीतर 274 मील चलकर डाक का वितरण करते थे। उस वक्त तक यह व्यवस्था बनाई गई थी कि हर गांव में हफ्ते में दो दिन डाक जरूर वितरित हो जाये। 1901 तक जिले के डाकघरों में 1258 बचत खाते खुले थे और उनमें कुल रकम ₹ 48,461.00 जमा थी।

                                   ..................

Popular posts from this blog

जौनपुर(विश्वप्रकाश श्रीवास्तव)भाषा का होता है अपना संसारः कुलपति

सुल्तानपुर(अखिलेश तिवारी)फिजिक्स वाला संस्था के फाउंडर अलख पांडेय व स्पेक्ट्रम ग्रुप ऑफ इंस्टिट्यूट के चेयरमैन आनंद सावरण की आपसी मुलाकात शिक्षा को सुलभ बनाने की हुई चर्चा

प्रतापगढ़!मनीष मिश्र एडवोकेट प्रतापगढ़ (उ. प्र.) का जीवन परिचय