दिल्ली एनसीआर(मनोज पांडेय)-ब्यक्तित्व के धनी सांसद रमेश बिधूड़ी

(जन्म दिन पर विशेष)   
  
         " रमेश बिधूड़ी" ( एक सांसद ऐसा भी )
 
 मैं उन्हें बहुत नज़दीक से जानता हूं ! उनके प्रशंसक और विरोधियों के संतुलन को देखूं तो समर्थक और प्रशंसक ज़्यादा नज़र आते हैं। वैसे विरोधी और आलोचकों की भी कोई कमी नहीं है ! उनके निवास पर जन समस्याओं को लेकर आने वाली भीड़ २००३ के मुकाबले आज २०२० में कई गुना ज़्यादा बढ़ गई है ! लोगों की ये भीड़ ही रमेश बिधूड़ी की बढ़ती लोकप्रियता की खुली गवाही देती है ! रमेश जी एक ऐसे नेता हैं जिन्हें मैंने तब से लोगों की जन समस्याओं के लिए स्थानीय प्रशासन से जूझते देखा है, जब वो विधायक भी नहीं थे ! आज वह सांसद हैं ! तो,,, ज़ाहिर है कि उनकी जिम्मेदारियों का कद बहुत बढ़ गया है ! चलिए मैं अपने पाठकों को रमेश बिधूड़ी के कठोर संघर्ष, विकट साहस,जन                                 मैं उन्हें बहुत नज़दीक से जानता हूं ! उनके प्रशंसक और विरोधियों के संतुलन को देखूं तो समर्थक और प्रशंसक ज़्यादा नज़र आते हैं। वैसे विरोधी और आलोचकों की भी कोई कमी नहीं है ! उनके निवास पर जन समस्याओं को लेकर आने वाली भीड़ २००३ के मुकाबले आज २०२० में कई गुना ज़्यादा बढ़ गई है ! लोगों की ये भीड़ ही रमेश बिधूड़ी की बढ़ती लोकप्रियता की खुली गवाही देती है ! रमेश जी एक ऐसे नेता हैं जिन्हें मैंने तब से लोगों की जन समस्याओं के लिए स्थानीय प्रशासन से जूझते देखा है, जब वो विधायक भी नहीं थे ! आज वह सांसद हैं ! तो,,, ज़ाहिर है कि उनकी जिम्मेदारियों का कद बहुत बढ़ गया है ! चलिए मैं अपने पाठकों को रमेश बिधूड़ी के कठोर संघर्ष, विकट साहस,जन सेवा , और सतत संघर्ष की उस कहानी से रूबरू कराता हूं, जिसके बारे में एक शेर कहा जा सकता है -
जिस्म  छिल जाता है पहचान नई पाने में !
कौन आसानी से बनता है मील का पत्थर !!
                   यादों का एलबम                             रमेश बिधूड़ी का जन्म 18 जुलाई 1961 को दिल्ली के ऐतिहासिक गांव तुगलकाबाद में हुआ ! पिता रामरिख बिधूड़ी की सामाजिक कार्यों में बड़ी सक्रीय भूमिका का प्रभाव बालक रमेश पर भी पड़ा ! प्रारंभिक शिक्षा कालका जी स्थित स्कूल से   शुरू हुई ! आगे चलकर उन्होंने दिल्ली के विख्यात भगत सिंह  कॉलेज से बी. कॉम किया। किसान बाहुल्य उस गांव में उस दौर में विरले ही कॉलेज तक पहुंचते थे ! साहसी, जोशीले और प्रखर वक्ता रमेश बिधूड़ी छात्र जीवन में ही सियासत में दाखिल हो गए ! लेकिन एक किसान के बेटे के लिए राजनीति का ये रास्ता आसान नहीं था ! ना तो वो किसी सियासी घराने से ताल्लुक रखते थे , और ना उन्हें किसी कार्पोरेट घराने की आर्थिक विरासत मिली थी ! अलबत्ता उनके पास साहस और उत्साह भरपूर था , अपने परिवार तथा भाइयों का नैतिक समर्थन था ! बस,,,, इतनी सी पूंजी लेकर वो अपने ख्वाबों को सूरज दिखाने निकल पड़े !
        संगम विहार तब बस रहा था, जब १९९० में मै भी वहां रहने की नीयत से पहुंचा ! पूर्वांचल के वही लोग बहुतायत से वहां ज़मीन खरीद रहे थे जो किराएदार होने का नर्क काट कर आये थे ! २५- ५० अथवा ६० गज जमीन कौड़ियों के भाव खरीद कर लोग अपने ख्वाबों का घरोंधा बना रहे थे ! पहले चरण में जिन्होंने ज़मीन बेची थी, अगले चरण में वो बिल्डिंग मैटेरियल और पानी बेचने लगे ! बिजली, पानी और सड़क की विकट समस्या सर उठा रही थी और कोई सुनने वाला नहीं ! तब संगम विहार को रमेश बिधूड़ी ने अपनी कर्मभूमि बना कर अपनी सियासी ज़िंदगी को एक दिशा देने की शुरुआत की ! ये वो दौर था जब संगम विहार की जन समस्याओं को लेकर लोग इसे संकट विहार और खांडवप्रस्थ कहने लगे थे ! समस्याओं का अंबार लगा था !
        १९९३ के विधान सभा चुनाव को एक साल बचा था और संगम विहार में नए नए नेता अंकुर की तरह उग आए थे ! प्रदेश में कांग्रेस का दबदबा था, मगर मंदिर आंदोलन से सारा देश आंदोलित था ! अगले साल चुनाव हुआ और बाबरी विध्वंस का खामियाजा कोंग्रेस को भुगतना पड़ा ! दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी संगठित मुस्लिम वोटर्स ने कोंग्रेस को ज़बरदस्त झटका दिया ! संगम विहार की सीट पर भी कोंग्रेस को शिकस्त मिली , और दिल्ली में चार सीटें जनता दल के खाते में गईं ! ( जो बाद में कोंग्रेस के खेमें में शामिल हो गई !) इस त्रिकोणीय चुनावी मुकाबले में रमेश बिधूड़ी ने  जबरदस्त परफॉर्मेंस दिखाया पर भाजपा वोटों के बिखराव और मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण के चलते आज़ाद उम्मीदवार शीशपाल विजयी हुए !
          निराश होने की बजाय  उन्होंने अपने आप को दोबारा जनसेवा में झोंक दिया ! देश में बहुत कम ऐसे नेता होंगे जो जनता को रमेश बिधूड़ी जितना वक्त देते हैं! प्रदेश हाईकमान ने उनकी योग्यता और समर्पित सेवा के  आधार पर  १९९८ में उन्हें फिर संगम विहार सीट से दोबारा उतारा , मगर वो फ़िर हार गए  ! संगठित मुस्लिम वोटर्स  के मुकाबले में बिखरे हिन्दू वोटर्स को  को एक दिशा देना आसान काम नहीं था ! भाजपा कैडर और संगठन बनाने का मुश्किल काम करने में रमेश बिधूड़ी ने जबरदस्त मेहनत किया था  ! लगातार दूसरी हार आदमी को निराश कर देती है , मगर रमेश बिधूडी किसी और ही  मिट्टी के बने थे ! ऐसे जीवट के लोग अपनी शिकस्त को आने वाली जीत का नक्शा बना लेटे हैं , और ,,,,, दिल्ली ने वही देखा !! आखिरकार 2003 में उसी संगम विहार से  सारे पूर्वानुमान को ध्वस्त करते एवं सारे विरोधियों को धूल चटाते हुए हुए रमेश बिधूड़ी ने यह सीट भाजपा के खाते में डाल दी !      
                             हर राजनेता के सियासी रास्ते में कठिनाइयां  आती हैं, किंतु रमेश बिधूड़ी के रास्ते में कुछ ज़्यादा ही मुश्किलें खड़ी थीं ! ये शायद एकमात्र ऐसे विधायक थे जो अपनी विधान सभा के साथ साथ दुसरी विधान सभा की जनता की परेशानी भी सुनते, समझते और हल करते थे ! मै अक्सर किसी काम के बगैर भी (सुनपत हाउस) उनके निवास चला जाता था, सिर्फ उनकी कार्यप्रणाली देखने ! हमने हमेशा उन्हें समस्याग्रस्त लोगो से घिरा पाया था ! वो मुझे भीड़ मै भी देख कर पहचान लेते और एक ही बात कहते,." आओ भारती भाई " !.
      उनकी सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा 2008 के दिल्ली विधान सभा चुनाव में तब पेश आई जब विधायक होने के बावजूद उन्हें पार्टी ने संगम विहार से टिकट न देकर तुगलकाबाद से प्रत्याशी बना दिया ! कोई भी प्रत्याशी होता तो लड़ने से पहले ही हार मान लेता । मगर रमेश बिधूड़ी को अपने निस्वार्थ भाव से की गई जन सेवा पर पूरा भरोसा था ! चुनाव परिणाम आया तो विरोधियों के सारे जोश पस्पा हो गए ! मिडिया के सारे पूर्वानुमान को ध्वस्त करते हुए रमेश बिधूड़ी ने भारी जीत हासिल की ! इस असंभव जीत को संभव बनाने के बाद प्रदेश में उनका कद काफ़ी बढ़ गया !
          "सांसद का कांटो भरा ताज" !
     २०१४.के लोक सभा चुनाव की जब तारीख़ घोषित हुई तो रमेश बिधूड़ी विधायक थे, मगर पार्टी हाईकमान ने उनके साहस,जुझारूपन, सूझबूझ, जनसेवा और सियासी पकड़ को देखते उन्हे दक्षिण दिल्ली से लोकसभा का प्रत्याशी घोषित कर दिया ! मोदी जी का जादू और रमेश बिधूड़ी की मेहनत सर चढ़ कर बोल रही थी ! रमेश बिधूड़ी भारी मतों से जीत कर संसद भवन पहुंचे ! भाजपा के प्रचंड बहुमत ने पूरे देश मे कांग्रेस की चूलें हिला दी थी , और संसद में एक दिशाहीन - नामनिहाद विपक्ष की तस्वीर नजर आने लगी ! पूरे देश में भाजपा  'कोंग्रेस मुक्त भारत ' के अभियान को गति और उर्जा देने लगी ।
           मै कभी कभी चला जाता था उनसे मिलने, पर कम ही जाना होता था ! सांसद बनने के बाद जनसेवा का भार काफ़ी बढ़ गया था । घर ( तुगलकाबाद) और सरकारी आवास ( लोदी इस्टेट) दोनों जगह लोग अपनी अपनी समस्या लेकर पहुंच रहे थे ! २०१६ में इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट में पत्रकारों से भरे हॉल में जब मेरी पहली किताब " राज दंश " का विमोचन हुआ तो अपने व्यस्त कार्यक्रम से वक्त निकाल कर रमेश बिधूड़ी जी मेरी हौसला अफजाई को वहां आए थे ! 
                चाटुकारिता  से दूरी
     एक बार मैंने उनके निवास सुनपत हाउस में अजीब नज़रा देखा था , जिसे मै कभी नहीं भूल सकता ! कई साल पहले की बात है ! ( शायद जब वो तुगलकाबाद के विधायक थे !) पेय जल की भारी दिक्कत से जूझते संजय कैंप के एक परिवार के लिए पानी के टैंकर का इंतेजाम करने के लिये मै सांसद से मिला ! उस दिन भी उनके निवास पर काफ़ी भीड़ थी ! वो जब मुझसे बात कर रहे थे तभी एक युवक ने आकर उनका पैर छुआ और बगल खड़ा हो गया ! रमेश जी ने पूछा ,"  कैसे  आए हो ?" 
    युवक का जवाब था , " बस दर्शन करने आया था !"
भीड़ और चाटुकारिता की चाहत से ग्रस्त कोई आम नेता होता तो ' दर्शन ' शब्द से गदगद हो जाता, मगर यहां इस चाटुकारिता का बिलकुल विपरीत असर नज़र आया ! गुस्से से बिफरते हुए रमेश बिधूड़ी के शब्द मुझे आज भी याद हैं, " देवता समझ लिया  के ? बगैर किसी काम के यहां आने की कोई ज़रूरत नहीं है ! यहां काम के लिए आना - दर्शन के लिए बहुत सारे नेता हैं "!
            अपने इस स्पष्टवादिता, सत्यवादित, साहस और  जनसेवा से जहां उनका जनाधार बढ़ा है वहीं उनके बहुत सारे विरोधी और दुश्मन भी पैदा हो है गए हैं !  खासकर स्थानीय प्रशासन के वो भ्रष्ट अधिकारी जिन्हें अब बगैर रिश्वत के काम करना पड़ रहा है ! रमेश बिधूड़ी के जनता दरबार में कोई शख्स ये शिकायत नहीं कर सकता कि उसकी शिक़ायत सुनी नहीं गई ! वो ना केवल सुनते हैं बल्कि तुरंत संबंधित अधिकारी को फोन कर के सख़्त लेहजे में समाधान करने का निर्देश भी देते है ! इस भाग दौड़ और असाधारण व्यस्तता का असर रमेश जी की सेहत पर भी पड़ा है ! (  आम दिनों में भी वो चार घंटे से ऊपर नहीं सोते हैं !)
                  विगत १९ दिसंबर २०२० को  कई महीने के अंतराल पर हमारी मुलाक़ात हुई ! हमेशा की तरह उनके पुश्तैनी घर सुनपत निवास का मीटिंग कक्ष भरा हुआ था ! मुझे देखते ही वह मुस्कराकर बोले, " ओ हो !
सुलतान द ग्रेट ! " बस,,,,वो अपने काम में लग गए , और मै उनकी जन सेवा का तरीका देखने लगा ! वहां पर आए लोगों में किसी का घर बनते बनते रोक दिया गया था , किसी को पड़ोसी तंग कर रहा था , तो,,, किसी को पेंशन योजना का लाभ लेना था !  एक बुज़ुर्ग का केस सबसे अलग था , उनके पूरे घर का सूख चैन नई बहू ने छीन लिया था !ये केस  पड़ोस के गोविंद पूरी क्षेत्र से आया था ! समस्या सुनकर सांसद भी हैरान थे ! ये जनता की चाहत का कद्दावर सबूत था, जो लोग उनसे अपनी पारिवारिक समस्या भी डिस्कस करलेते हैं! 

           दिन के पौने ग्यारह बज चुके थे ! अभी ग्यारह बजे उन्हें दस किलो मीटर दूर जाकर  दूसरे ऑफिस में बैठ कर जन समस्याओं से रुबरू होना था ! दस बजकर पचास मिनट पर वो उठकर अपनी कार की ओर चल पड़े !  आज की जन पंचायत खत्म हो चुकी थी !

                    अपनी बाइक पर सवार घर लौटते हुए सांसद रमेश बिधूड़ी के लिए  एक शेर बार बार मेरे ज़ेहन में आ रहा था , जो उन पर पूरी तरह फिट बैठता है !

हज़ारों  साल  नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है!
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा !!

          

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